एक जोड़ी चप्पल
गाँव का एक सीधा-सादा लड़का था अर्जुन। रोज़ नंगे पाँव स्कूल जाता, कभी खेतों में काम करता, कभी माँ के लिए कुएं से पानी भरता। उसके पास सिर्फ़ एक जोड़ी टूटी हुई चप्पल थी — एक पट्टी गायब, दूसरी जगह- जगह से फटी हुई। बच्चे उसका मज़ाक उड़ाते, लेकिन वो चुपचाप मुस्कुराता और कहता, “मैं तो पैर के नीचे धरती महसूस करता हूँ, तुम लोग क्या जानो ज़मीन से जुड़ने का सुख।”
एक दिन स्कूल में प्रतियोगिता हुई — भाषण प्रतियोगिता। सबने अच्छे कपड़े पहने, जूते चमकाए, और अर्जुन आया उसी अपनी टूटी चप्पल में। पर जब मंच पर खड़ा हुआ, तो जो बोला — उसने सबको चुप कर दिया:
“मेरे पास नए कपड़े नहीं हैं, नई चप्पल नहीं है। लेकिन मेरे पास सपना है — एक ऐसा सपना जो मेरे पैरों से नहीं, मेरे हौसले से चलता है। जब तक ये सपना ज़िंदा है, तब तक मेरी चप्पल नहीं, मेरी मेहनत मेरी पहचान बनेगी।”
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
अर्जुन ने उस दिन पहला इनाम जीता — और कुछ सालों बाद, वही लड़का गाँव का पहला कलेक्टर बना।
सीख:
कपड़े, जूते, चप्पल नहीं बताते कि आप कौन हैं — आपकी सोच, आपके शब्द, और आपका सपना बताता है।
अगर हालात साथ नहीं दे रहे, तो हौसला उन्हें मात दे सकता है।
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