राख से उठता सूरज
छत्तीसगढ़ के छोटे से गाँव बहराटोली में जन्मा विक्रम, एक गरीब किसान रामसेवक और मजदूर मां गीता का बेटा था। उनका परिवार मिट्टी की झोपड़ी में रहता था। खाना कभी पूरा मिलता, कभी नहीं। लेकिन इन हालातों के बीच भी विक्रम की आंखों में एक सपना पल रहा था—"अफसर बनूंगा, मां।"
मां कहती, "सपने पालने से पहले पेट भर खाना चाहिए बेटा।"
विक्रम चुप रहता, लेकिन मन में खुद से वादा कर चुका था।
गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए उसे जोशी सर जैसे गुरु मिले, जिन्होंने उसकी प्रतिभा पहचानी। उन्होंने कहा,
"तू बहुत दूर जाएगा विक्रम, बस हिम्मत मत हारना।"
बारहवीं में जिले में टॉप किया, तो एक NGO ने मदद की और रायपुर के एक कॉलेज में दाखिला दिलवाया। शहर की दुनिया विक्रम के लिए नई थी—न मोबाइल, न ब्रांडेड कपड़े, न महंगे नोट्स। वह अमीर छात्रों के बीच खुद को तुच्छ महसूस करता। लेकिन हर बार जब हिम्मत टूटती, मां की मेहनत आंखों के सामने आ जाती।
📚 सपनों की तैयारी और पहली हार
कॉलेज के साथ-साथ उसने SSC CGL की तैयारी शुरू की। सुबह 4 बजे उठकर पढ़ाई, दिन में कॉलेज, शाम को ट्यूशन पढ़ाना और फिर रात की पढ़ाई—यही उसकी दिनचर्या थी।
पहली बार जब परीक्षा दी, तो वो असफल हो गया।
वो रात विक्रम के लिए सबसे काली थी। आँखों में आँसू थे, दिल में खालीपन। लेकिन उसी कमरे की दीवार पर चिपका जोशी सर का लिखा एक वाक्य उसे खड़ा कर गया:
"असफलता वो सीढ़ी है जिस पर चढ़कर ही सफलता की छत मिलती है।"
💔 हॉस्टल बंद, पेट खाली, लेकिन इरादा पक्का
तभी एक और संकट आया—NGO की फंडिंग बंद हो गई। हॉस्टल छोड़ना पड़ा। विक्रम ने हार नहीं मानी। एक चाय की दुकान पर बर्तन धोने लगा, साथ में ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च निकाला।
पढ़ाई जारी रही। लाइब्रेरी उसका मंदिर थी और भूख उसका इम्तहान।
"जिसे मंज़िल की सच्ची भूख हो, वो कभी थकता नहीं।"
💬 एक उम्मीद—साक्षी
इसी संघर्षों भरी लाइब्रेरी में विक्रम की मुलाकात हुई साक्षी से, जो UPSC की तैयारी कर रही थी। दोनों की सोच मिलती थी—सीधे, सच्चे और मेहनती। धीरे-धीरे दोस्ती गहरी हुई, लेकिन विक्रम ने खुद से वादा किया था:
"जब तक मां खेत में काम कर रही है, मैं किसी रिश्ते के बारे में नहीं सोच सकता।"
साक्षी ने भी उसका सपना समझा और उसे प्रोत्साहित किया।
🎯 और फिर परीक्षा का दिन
दूसरे प्रयास में विक्रम ने परीक्षा दी—इस बार पूरी तैयारी और आत्मविश्वास के साथ। जब परिणाम आया, तो वो अवाक रह गया:
> "ऑल इंडिया रैंक 43!"
वो चिल्लाया नहीं, बस शांत बैठा रहा, आंखें भर आईं। ये जीत सिर्फ उसकी नहीं थी—ये उसकी मां की थी, पिता के पसीने की थी, जोशी सर के भरोसे की थी, और हर उस भूखे दिन की थी जब उसने सिर्फ एक रोटी में पढ़ाई की थी
🎉 गाँव की वापसी
जब विक्रम यूनिफॉर्म में गांव लौटा, तो पूरा गाँव तालियों से गूंज उठा। मां ने उसे गले लगाकर कहा:
"अब मुझे मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी बेटा?"
विक्रम बोला, "नहीं मां, अब तू सिर्फ आराम करेगी।"
पिता की आंखें नम थीं, लेकिन मुस्कान स्थिर।
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🌟 सीख और संदेश
> सपने देखने का हक़ हर किसी को होता है, लेकिन उन्हें पूरा करने की ताक़त मेहनत से मिलती है।
विक्रम ने गरीबी में जन्म लिया, लेकिन उस गरीबी को अपनी ताकत बना लिया। उसने दिखाया कि संसाधनों की कमी कभी भी संघर्ष करने वाले को रोक नहीं सकती—अगर हौसला हो, तो इंसान राख से उठकर सूरज बन सकता है।